पाशुपत स्तोत्र
जैसा कि मैं पहले से भी कहता आ रहा हूं कि शनि स्वयं कोई फल प्रधान नहीं करता वह जातक के निज कर्मों का फल प्रधान करता है। न्याय के आसन पर बैठकर वे कभी इस बात की परवाह नहीं करते उनके द्वारा किया गया न्याय संबंधित व्यक्ति को कितना कष्टकारी होगा, उसे कितना दुख भुगतना पड़ेगा। वे मात्र उसके किये गये कुकर्मों को देखते हुए निर्णय देते हैंं। यदि किसी व्यक्ति की जन्म-कुण्डली में शनि प्रतिकूल परिस्थितियों में स्थित हैं तो जरूर उसने पूर्वजन्म में कहीं न कहीं ऐसे अशुभ कर्म किये होंगे जो मानवता के अथवा धर्म के प्रतिकूल थे।
पिछले कुछ वर्षों में मैंने देवाधिदेव शनिदेव की कृपा से शिव के मंत्र व स्तोत्र का प्रयोग स्वयं कई व्यक्तियों के लिए किया है और उसका फल बहुत ही अनुकूल प्राप्त हुआ। उसी अमोघ प्रयोग को मैं यहां दे रहा हूं जिसका फल बहुत जल्दी प्राप्त होता है।
यह स्तोत्र अग्नि पुराण के ३२२ वें अध्याय से लिया गया है। यह अत्यन्त प्रभावशाली व शीघ्र फलदयी प्रयोग है। यदि मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ गुरू के निर्देशानुसार संपादित करे तो अवश्य फायद मिलेगा। शनिदेव शिव भक्त भी हैं और शिव के शिष्य भी हैं। शनि के गुरु शिव होने के कारण इस अमोघ प्रयोग का प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है। यदि किसी साधारण व्यक्ति के भी गुरु की कोई आवभगत करें तो वह कितना प्रसन्न होता है। फिर शनिदेव अपने गुरु की उपासना से क्यों नहीं प्रसन्न होंगे। इस स्तोत्र के पाठ से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और शिव की प्रसन्नता से शनिदेव खुश होकर संबंधित व्यक्ति को अनुकूल फल प्रधान करते हैं। साथ ही एक विशेषता यह भी परिलक्षित होती है कि संबंधित व्यक्ति में ऐसी क्षमता आ जाती है कि वह शनिदेव के द्वारा प्राप्त दण्ड भी बड़ी सरलता से स्वीकार कर लेता है। साथ ही वह अपने जीवन में ऐसा कोई अशुभ कर्म भी नहीं करता जिससे उस पर शनिदेव भविष्य में भी नाराज हों।
जैसा कि इसका नाम अमोघ प्रयोग है, उसी प्रकार यह किसी भी कार्य के लिए अमोघ राम बाण है। अन्य सारी बाधाओं को दूर करने के साथ ही युवक-युवतियों के लिए यह अकाट्य प्रयोग माना ही नहीं जाता अपितु इसका अनेक अनुभूत प्रयोग किया जा चुका है। जिस वर या कन्या के विवाह में विलंब होता है, यदि इस पाशुपत-स्तोत्र का प्रयोग जैसा कि बताया गया है १००८ की संख्या में पाठ करने के बाद दशांश, हवन, तर्पण एवं मार्जन कर यथा शक्ति ब्राह्मण भोजन कराकर पूर्णाहुति करें तो निश्चित रूप से शीघ्र ही उन्हें दम्पत्य सुख का लाभ मिलता है। केवल इतना ही नहीं, अन्य सांसारिक कष्टों को दूर करने के लिए भी १००८ पाठ या जप, हवन, तर्पण, मार्जन आदि करने से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
मंत्र पाठ
पाशुपत ोत का २१ दिन नियमित सुबह-शाम २१-२१ पाठ प्रतिदिन करें। साथ ही नीचे लिखे स्तोत्र का एक सौ आठ बार अवश्य जाप करें और सुबह या शाम को इस मंत्र की ५१ आहुतियां काले तिल से हवन अवश्य करें।
विनियोग
ú अस्य श्री पाशुपतााशान्तिस्तोत्रस्य भगवान् वेदव्यासगषि: अनुष्टुप छन्द: श्रीसदशिवपरमात्मा देवता सर्वविघ्नविनाशार्थे पाठे विनियोग:।
मंत्रपाठ
ú नमो भगवते महापाशुपताय, अतुलवीर्यपराक्रमाय, त्रिपंचनयनाय, नानारूपाय, नानाप्रहरणोद्यताय, सर्वांगरंक्ताय, मनीसांजनचयप्रख्याय,श्मशानवेतालप्रियाय, सर्वविघ्न- निकृन्तनरताय, सर्वसिद्धिप्रधान, भक्तानुकंपिनेऽसंख्यवक्त्रभुज- पादय, तस्मिन् सिद्धाय, वेतालवित्रासिने, शाकिनी क्षोभजनकाय, व्याधिनिग्रहकारिणे पापभंजनाय, सूर्यसोमाग्निर्नत्राय, विष्णुकवचाय, खड्गवज्रहस्ताय, यमदंडवरुणपाशाय, रुद्रशूलाय,ज्वलज्जिह्वाय, सर्वरोगविद्रावणाय, ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनाशक्षयकारिणे।
ú कृष्णपिंगलाय फट्। हुंकारााय फट्। वज्रहस्ताय फट्। शक्तये फट्। दंंडाय फट्। यमाय फट्। खड्गाय फट्। निर्गतये फट्। वरुणाय फट्। वज्राय फट्। पाशाय फट्। धवजाय फट्। अंकुशाय फट्। गदय फट्। कुबेराय फट्। त्रिशूलाय फट्। मुद्गाय फट्। चक्राय फट्। पद्माय फट्। नागााय फट्। ईशानाय फट्। खेटकााय फट्। मुंडाय फट्। मुंडााय फट्। कंकालाख्याय फट्। पिबिछकााय फट्। क्षुरिकााय फट्। ब्रह्मााय फट्। शक्त्याय फट्। गणााय फट्। सिद्धााय फट्। पिलिपिबछााय फट्। गंधर्वााय फट्। पूर्वााय फट्। दक्षिणााय फट्। वामााय फट्। पश्चिमााय फट्। मंत्रााय फट्। शाकिन्याय फट्। योगिन्याय फट्। दंडााय फट्। महादंडााय फट्। नमोऽाय फट्। शिवााय फट्। ईशानााय फट्। पुरुषााय फट्। आघोरााय फट्। सद्योजातााय फट्। हृदयााय फट्। महााय फट्। गरुड़ााय फट्। राक्षसााय फट्। दनवााय फट्। क्षौंनरसिंहााय फट्। त्वष्ट्ाय फट्। सर्वााय फट्। न: फट्। व: फट्। प: फट्। फ: फट्। भ: फट्। श्री: फट्। पै: फट्। भू: फट्। भुव: फट्। स्व फट्। मह: फट्। जन: फट्। तप: फट्। सत्यं फट्। सर्वलोक फट्। सर्वपाताल फट्। सर्वतत्तव फट्। सर्वप्राण फट्। सर्वनाड़ी फट्। सर्वकारण फट्। सर्वदेव फट्। द्रीं फट्। श्रीं फट्। हूं फट्। ाुं फट्। स्वां फट्। लां फट्। वैराग्याय फट्। कामााय फट्। क्षेत्रपालााय फट्। हुंकारााय फट्। भास्करााय फट्। चन्द्रााय फट्। विघ्नेश्वरााय फट्। गौ: गा: फट्। ौं ौं फट्। भ्रामय भ्रामय फट्। संतापय संतापय फट्। छादय छादय फट्। उन्मूलय उन्मूलय फट्। त्रासय त्रासय फट्। संजीवय संजीवय फट्। विद्रावय विद्रावय फट्। सर्वदुरितं नाशय नाशय फट्।।
इन मंत्रों का 1008 की संख्या में पाठ करने के उपरांत प्रतिदशांश हवन, तर्पण एवं मार्जन भी विधिपूर्वक करें।
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