मृत्युञ्जय-स्तोत्र
रत्नसानुशरासनं रजताद्रि शृङ्गनिकेतनं।
शिञ्जिनी कृत पन्नगेश्वर मच्युतानल सायकम्।।१।।
क्षिप्रदग्धपुर त्रयं त्रिदशालयैरभि वन्दितम्।
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।२।।
सुमेरु पर्वत की चोटी पर हीरे जवाहरातों से जुड़े हुए वाणों के आसन पर विराजमान, सर्पराज (वासुकी नाग) की डोरी बाला भगवान विष्णु का अग्निवाण धारण किये हुए, त्रिपुरासुर राक्षस की नगरी को शीघ्र ही जला देने वाले, जो देवताओं से वन्दित हैं, ऐसे चन्द्रशेखर भगवान की शरण प्राप्त मेरा यमराज क्या कर सकता है? यानी मार नहीं सकता।
पद्मपादप पुष्प गन्धि पदाम्बुज द्वय शोभितं।
भाल लोचन जात हाटक दग्ध मन्मथ विग्रहम्।।३।।
भस्म दिग्ध कलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययम्।
चन्द्र शेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।४।।
देनों चरण कमल सुगन्धित कमल से सुशोभित, सोने के समान कपाल में नेत्र वाले सम्पूर्ण शरीर में भस्म लगाये, कामदेव के शरीर को जला देने वाले, जो संसार के नाशक व पालक हैं, ऐसे भगवान चन्द्रशेखर (शिवजी) का आश्रय प्राप्त मेरा यमराज क्या बिगाड़ लेगा?
मत्तवारण मुख्य चर्मकृतोत्तरीयमनोहरं।
पङ्कजासनपद्म लोचन पूजिताङ्घ्रिसरोरूहम्।।५।।
देवसिद्धितरङ्गिणी कर सित्तशीत जटाधरं।
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।६।।
उन्मत्त गजराज का चर्म जिनका व व चादर है, जो कमल के आसन पर विराजमान हैं, कमल नेत्र, सुंदर कमलों से पूजित, देवगंगा के जलकणों से सिक्त, शीतल, जटाधारी भगवान चन्द्रशेखर का आश्रय प्राप्त मेरा यमराज क्या कर लेगा?
कुण्डलीकृत कुण्डलीश्वर कुण्डल वृष वाहनं।
नारदादि मुनीश्वरस्तुत वैभवं भुवनेश्वरम्।।७।।
अन्धकान्तकमाश्रितामर पादपं शमनान्तकं।
चन्द्रशेखरमाश्रये मम् कि करिष्यति वै यम:।।८।।
कुंडली मारे सर्पराज का कुण्डल कान में पहने हुए, बैल की सवारी वाले, नारद आदि श्रेष्ठ मुनियों से वन्दित ऐश्वर्य स्वरूप  चौदहों भुवन के स्वामी, अन्धकासुर को मारने वाले, देवता जिनके चरणों के आश्रित हैं, उस शमन का अन्त करने वाले, चन्द्रशेखर के आश्रय प्राप्त मेरा यमराज कुछ भी नहीं कर सकता।
यक्षराज सखं भगाक्षिहरं भुजङ्ग विभूषणं।
शैलराज सुता परिष्कृत चारुवाम कलेवरम।।९।।
क्ष्वेडनील गलं परश्वधारिणं मृग धारिणं।
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।१०।।
कुबेर के मित्र, चन्द्र नेत्रहारी, सर्प आभूषण वाले, पार्वती (परिष्कृत व सुन्दर रूप) जिनकी पत्नी हंै, विष से जिनका गला नीला है, जो परशु और मृग धारण करने वाले चन्द्रशेखर का आश्रय प्राप्त मेरा यमराज कुछ नहीं कर सकता।
भेषजं भवरोगिणाम्खिलाऽपदामपहारिणं।
दक्ष यज्ञ विनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्।।११।।
भुक्ति मुक्ति फल प्रदं निखिलाय संघनिबर्हणं।
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।१२।।
दक्ष प्रजापति के यज्ञ के नाशक, सत्व-रज-तम तीनों गुणों से युक्ताभिनेय भोग और मोक्ष फल देने वाले, समस्त संघों का निर्वाह करने वाले चन्द्रशेखर का आश्रय प्राप्त मेरा यमराज कुछ भी नहीं कर सकता।
भक्तवत्सलमर्चता निधिमक्षयं हरिदंबरं।
सर्वभूतपति परात्परमप्रमेयमनूपमम्।।१३।।
भूमि वारिनभो हुताशन सोम पालितआकृतिं।
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।१४।।
भक्तवत्सल, पूजित होने वाले अक्षयनिधि, हरित व धारण करने वाले, सब प्राणियों के स्वामी, परात्पर ब्रह्म, उपमारहित, पृथ्वी-जल-आकाश-अग्नि व चन्द्र से पालित आकृति वाले चन्द्रशेखर के आश्रित मेरा यमराज कुछ नहीं कर सकता है।
विश्व सृष्टि विधायिनं पुनरेव पालन तत्परं।
संहरन्तमथ प्रपञ्च सशेष लोकनिवासिनम्।।१५।।
क्रीडयन्त महर्निशं गणनाथ यूथ समावृतं।
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।१६।।
संसार के सृष्टि कर्ता, पुन: उसके पालन में तत्पर, सांसारिक प्रपंच (माया जाल) के हरण कर्ता, सब लोकों (भुवनों) के निवास स्थान, गणपति आदि समस्त यूथो से घिरे हुए, रात-दिन क्रीड़ा करने वाले, चन्द्रशेखर के आश्रित मेरा यमराज कुछ नहीं कर सकता।
रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नील कण्ठमुमापतिम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु करिष्यति।।१७।।
रुद्र, पशुपति, स्थाणु, नीलकण्ठ, उमापति को मैं शिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा क्या कर लेगा?
कालकष्ट कलामूर्तिं कालाग्नि काल नाशनम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।१८।।
काल (मृत्यु) जैसे कष्ट का नाश करने वाले, कलाओं की मूर्ति, कालाग्नि (दुष्टों को अग्नि के समान जलाने वाले), मृत्यु का भी नाश करने वाले को मैं शिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा कुछ भी नहीं करेगी।
नील कण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निरूपद्रवम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।१९।।
नीले कण्ठ वाले, त्रिनेत्र, स्वच्छ हृदय वाले, उपद्रवों से रहित देव शिव को मैं सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा कुछ भी नहीं करेगी।
वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।२०।।
वामदेव, महादेव, लोकों के स्वामी, विश्व के गुरु शिव को मैं सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा क्या करेगी/?
देवदेवं जगन्नाथं देवेशवृषभध्वजम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।२१।।
देवों के भी देव, जगन्नाथ (संसार के स्वामी), देवों के स्वामी, जिनके ध्वजा में वृषभ का चिह्न है, उन शिवजी को मैं शिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा क्या करेगी?
अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधरं हरम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।२२।।
अनंत, अव्यय शान्त स्वरूप, रुद्राक्ष - मालाधरी, शिव जी को मैं सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा क्या करेगी?
आनन्दे परमं नित्यं कैवल्यप्रद कारणम्।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।२३।।
नित्य आनन्द स्वरूप, उत्कृष्ट, शाश्वत, मोक्ष के कारण शिव को मैं सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा क्या करेगी?
स्वर्गांपवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यंत कारिणम।
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।२४।।
स्वर्ग और मोक्ष देने वाले, सृष्टि-पालन व संहार करने वाले शिव को मैं सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। मृत्यु मेरा क्या करेगी?

 Previous    1   2   3     Next 
Last updated on 20-04-2024
Home :: Lord Shani :: Shani Sadhe Satti Dhaiya :: Shree Shanidham Trust :: Rashiphal :: Our Literature
Photo - Gallery :: Video Gallery :: Janam Patri :: Pooja Material :: Contact Us :: News
Disclaimer :: Terms & Condition :: Products
Visitors
© Copyright 2012 Shree Shanidham Trust, All rights reserved. Designed and Maintained by C. G. Technosoft Pvt. Ltd.