प्रधान संकल्प -
ॐ  विष्णर्विष्णुर्विष्णु:। श्रीमद् भगवतोविष्णोराज्ञयाप्र- वर्तमानस्य- ब्रह्मणोह्निद्वितीयेपराद्र्धे वैवस्वतमन्वन्तरे- अष्टाविंशतितमेकलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बू द्वीपे भरत खण्डे भारत वर्षे आर्यावतन्तिर्गत कुमारिका क्षेत्रे गंगा यमुनयो: अमुक तटे अमुक नाम्नि नगरे/ग्रामे अमुकनाम्नि विक्रमसंवत्सरे अमुक अयनेसूर्ये अमुकऋतौ अमुक मासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ यथा यथा राशिस्थितेषु ग्रहेषु एवं गुण विशेषेण विशिष्टायां शुभ पुण्य तिथौ मम (यजमानस्य वा) आत्मन: श्रुति स्मृति पुराणोक्त पुण्य फल प्राप्ति पूर्वक शरीरे सञ्जातानां तापाद्यखिल महारोगाणामुपशमनार्थं सर्वारिष्टशान्त्यर्थञ्च षट् प्रणव संयुक्तस्य श्री महामृत्युञ्जय (मृतसञ्जीवन) मन्त्रस्य अमुक संख्याकं जप (ब्राह्मण द्वारा) वा अहं करिष्ये।।
विनियोग -
पुनर्जलं गृहीत्वा
(पुन: हाथ में जल लेकर संकल्प सहित विनियोग करें।)
संकल्पं कृत्वा
अस्य श्री मृत्युञ्जय मन्त्रस्य वसिष्ठ ऋषि:। श्री मृत्युञ्जयरुद्रो देवता। अनुष्टुप्छन्द:। हौं बीजम्। जूं शक्ति:। स: कीलकम्। श्री मृत्युञ्जय प्रीतये मम (यजमानस्य वा) अभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोग:।।
ऋष्यादि न्यास:
वसिष्ठ ऋषयेे नम: शिरसि।
अनुष्टुप्छन्दसे नमो मुखे।
श्री मृत्युञ्जय रुद्रदेवतायै नमो हृदये।
हौं बीजाय नमो गुह्ये।
जूं शूलये नम: पादयो:।
स: कीलकाय नम: सर्वाङ्गेषु।।

करादि न्यास:

ॐ त्र्यम्बकं अङ्गुष्ठाभ्यां नम:।

 यजामहे तर्जनीभ्यां नभ:।

ॐ सुगन्धि पुष्टिवर्धनं मध्यमाभ्यां नम:।
 उर्वारुकमिव बन्धनात् अनामिकाभ्यां नम:।
 मृत्योर्मुक्षीय कनिष्ठिकाभ्यां नम:।
 मामृतात् करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।
हृदयादि न्यास:
 त्र्यम्बकं हृदयाय नम:।
 यजामहे शिरसे स्वाहा।
 सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं शिखायै वषट्।
 उर्वारुकमिव बन्धनात् कवचाय हुम्।
 मृत्योर्मुक्षीय नेत्र त्रयाय वौषट्।
 मामृतात् अय फट्।।

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Last updated on 16-04-2024
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