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Shanivar Vrat Vidhi va Katha
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देवाधिदेव शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शास्त्राों में अनेकानेक उपाय बतलाये गये हैं। निजकृत कर्मों की बेड़ियों से जकड़ा जीव चौरासी लाख योनियों में भटकता-भटकता जब प्रभु कृपा से मानव शरीर पाने का सौभाग्य पाता है तो उसे क्रियमाण कर्म करने का ऐसा हथियार प्राप्त हो जाता है जिसका इस्तेमाल कर वह अपने जन्म जन्मांतर के कर्मजनित दोषों का परिहार कर सकता है। सनातन धर्म ग्रंथों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि जीवों के निजकृत संचित कर्मों का जो भाग वर्तमान जीवन काल में भोगना होता है, उसे ही प्रारब्धा कहते हैं। प्रारब्ध के किस कर्म के फल का भोग जीव को कब भुगतना होगा, इसका निर्णय ग्रहों के अधीन होता है और उसमें शनिदेव की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। वह ग्रहों की अदालत में सर्वोच्च न्यायधीश की भूमिका निभाते हैं। अत: यदि किसी व्यक्ति की कुंडली का ज्योतिषीय विश्लेषण करने पर पता चलता है कि शनिदेव प्रतिकूल फलों की प्राप्ति का संकेत दे रहे हैं, तो उनके अनुकूलन के लिए शास्त्राों में स्तोत्रा पाठ, जप, दान, स्नान व व्रत आदि अनुष्ठानों का भी उल्लेख है। कुछ शास्त्राोक्त उपाय व टोटके भी बड़े प्रभावी होते हैं। किंतु शनि तैलाभिषेक व शनि व्रत अनुष्ठान बड़े ही सरल उपाय हैं जिन्हें कोई भी व्यक्ति बड़ी आसानी से कर सकता है। प्रस्तुत पुस्तिका में शनि व्रत अनुष्ठान की विधि व नियमों का उल्लेख करते हुए शनिव्रत कथाओं का भी उल्लेख किया गया है। अंत में दशरथकृत शनि स्तोत्रा, शनि यंत्रा व मंत्रा, हनुमान चालीसा, शनि चालीसा व शनिदेव की आरती भी दे दी गयी है। फलस्वरूप यह पुस्तिका शनि व्रत करने वाले व्यक्तियों के लिए विशेष उपयोगी हो गयी है। आशा है शनिभक्त इसका अधिाकाधिाक लाभ उठायेंगे। शनिदेव सबका मंगल करें।
 
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Last updated on 26-04-2024
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