शनिदेव की साढ़ेसाती का हौवा

शनिदेव की साढ़ेसाती का आज सारे संसार में हौवा बना हुआ है। यदि किसी व्यक्ति को यह कह दिया जाये कि तुम पर शनिदेव की साढ़ेसाती चल रही है तो न जाने उस व्यक्ति के दिमाग में क्या-क्या भ्रान्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।

अभी थोड़े दिन पहले की बात है। राजस्थान प्रवास के दौरान एक मेरे प्रिय भक्त घबराये हुए मेरे पास आए। मैंने देखा कि वह बहुत ही चिन्तित हैं। मैंने पूछा, ''क्या बात है भई?'' तो उन्होंने मुझे बताया कि पिछले दिनों मैंने अपनी जन्मपत्री एक पंडित जी को दिखायी तो उन्होंने कहा कि आने वाले वर्ष में आपको शनिदेव की साढ़ेसाती का सामना करना पड़ेगा। कहते हैं कि साढ़ेसाती बहुत खराब होती है, वह संबंधित व्यक्ति और उसके परिवार वालों के लिए बहुत कष्टदायक होती है, कारोबार में घाटा होता है, किसी प्रियजन के बिछुड़ने का भी दु:ख होता है। परिवार में किसी को भयंकर बीमारी भी हो सकती है। .....

साढ़ेसाती के संबंध में न जाने कितनी तरह की भ्रांतियां उस सज्जन के मन में उथल-पुथल मचायी हुई थीं। मैंने उस सज्जन से, जो बहुत बड़े अफसर और विद्वान भी थे, पूछा कि आपका इसके बारे में क्या विचार है? क्या ऐसा होगा? उस सज्जन के पास मेरे सवाल का कोई जवाब न था। उन्हें तो शनिदेव की साढ़ेसाती में मिलने वाले दुख व बाधाओं का दृश्य रातों दिन बार-बार नजर आ रहा था।

मैंने उन्हें बहुत समझाया कि शनिदेव की साढ़ेसाती हर व्यक्ति के लिए एक ही प्रकार की नहीं होती। इस विषय में कई बातों का विश्लेषण करने के बाद ही कोई निर्णय निकाला जा सकता है। लेकिन उन्हें मेरी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

मेरे मित्रो, यह हाल आज के विद्वान कहे जाने वाले मनुष्यों का है, शनिदेव की साढ़ेसाती के बारे मेें। वास्तव में यदि मेरा व्यक्तिगत अनुभव पूछा जाए तो सभी जातक-जातिकाओं पर साढ़ेसाती का प्रभाव एक जैसा नहीं होता। क्योंकि शनिदेव एक ऐसे ग्रह हैं जो संतुलन एवं न्याय का प्रतीक माने जाते हैं। ज्योतिष विद्या की शब्दावली में श्री शनिदेव तुला राशि में उच्च के होते हैं व मेष राशि में नीच के। यहाँ यह बात स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि कोई भी ग्रह उच्च या नीच नहीं होता। किसी राशि विशेष में उच्च का होने का तात्पर्य उत्तम फल देने वाला और नीच का तात्पर्य प्रतिकूल फल देने वाला होता है। किंतु नीच का होने के बावजूद शनिदेव कभी-कभी जातकों को अनुकूल फल भी उपलब्ध कराते हैं। शनिदेव के स्वभाव का एक महत्वपूर्ण गुण यह है कि ये अनुचित विषमता तथा अस्वाभाविक सक्षमता को पसन्द नहीं करते। जो जातक-जातिकाएं उपरोक्त व्यवहार अपनाते हैं, शनिदेव उन पर कुपित हो जाते हैं।

शनिदेव के कुपित होने का अर्थ यह है कि संबंधित जातक अन्याय एवं अनावश्यक विषमताओं का साथ दे रहा है। ऐसे मनुष्यों को शनिदेव दंडित कर उनका शुध्दिकरण करते हैं। साथ ही उन्हें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित भी करते हैं। ऐसी स्थिति में यह कहना कि शनिदेव की साढ़ेसाती की पूरी अवधि खराब है, एकदम गलत है। क्योंकि यदि एक बच्चा स्कूल से एक पेंसिल चुरा कर घर ले आये और मां उसे दंड देने के बजाय उसे प्रोत्साहन दे तो वह भविष्य में एक दिन बहुत बड़ा चोर बन जायेगा। यदि उसे पहले दिन ही पेंसिल चोरी के लिए दंडित कर दिया जाये तो वह दंड उसे हमेशा सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करेगा। या यूं कह दीजिए कि सुनार सोने को गर्म आग में रखकर ही सुन्दर आभूषणों के लिए ढालता है, ठीक उसी प्रकार शनिदेव न्याय अधिकारी बनकर जातक-जातिकाओं के पापों की सजा देकर उन्हें पवित्र कर सुख-सम्पत्ति एवं धन देते हैं।

शनिदेव का एक विशेष गुण यह भी है कि वह दूध का दूध एवं पानी का पानी कर देते हैं। यानी वह सच्चे और झूठे का भेद भलीभांति समझते हैं। शनिदेव बहुत बड़े उपदेशक, शिक्षक एवं गुरु भी कहे जाते हैं, जो जातक को विपत्ति और कष्ट, अभाव व निर्धनता रूपी तापों से तपाकर मलहीन बनाते हुए उसे उन्नति के सोपान पर लाकर खड़ा कर देते हैं। यानी इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि साढ़ेसाती में यदि शनिदेव प्रतिकूल परिस्थितियों का संकेत देने वाले भाव में बैठे हैं तो हमारे प्रारब्ध या यिमाण कर्म में कहीं न कहीं त्रुटि जरूर रही है और उसका फल हमें साढ़ेसाती में अवश्य भुगतना होगा।

अब मैं आपको ज्योतिषीय भाषा में शनिदेदव की व्याख्या करने जा रहा हूं लेकिन आप इस बात को मत भूलना कि शनि कर्मों का फल देते हैं। आपके कर्म के आधार पर आप पर यह फल लागू होगा। क्योंकि कभी समय अच्छा या बुरा नहीं होता अच्छे बुरे तो हमारे कर्म होते हैं और कर्मों के आधार पर समय अच्छा या बुरा होता है।

परन्तु यदि हमें यह ज्ञात हो जाए कि साढ़े सात वर्ष में से कौन सा समय अच्छा जायेगा, या कौन सा समय बुरा जायेगा, तो संबंधित व्यक्ति तदनुसार कदम उठाकर हर हालत में अपने को खुशहाल रखने की युक्ति निकाल सकता है। उसे यह मालूम हो जाये कि आज मेरा समय खराब है, अत: मैं अच्छा कार्य करूं, कल शुभ समय भी आने वाला है तो वह दु:ख एवं मुसीबतों को सहते हुए भी उनको भुलाकर सुख व सुनहरे पल का इन्तजार करेगा। सुख के इंतजार में बड़ा से बड़ा दुख भी आसानी से कट जाता है। वैसे भी यह परंपरा है कि अंधेरी रात के बाद सदैव सुबह होती है। आज दुख है तो कभी सुख भी अवश्य आयेगा।

अत: शनिदेव की साढ़ेसाती को हौवा समझ उससे डरने के बजाय हम अपने यिमाण कर्म को सुधारें तो अच्छा रहेगा। याद रहे, शनिदेव की साढ़ेसाती का प्रभाव तीन चरणों में होता है और तीनों चरण एक समान नहीं होते, तीनों चरणों में संबंधित व्यक्ति को सुख-दुख के अलग अलग स्वाद चखने को मिलते हैं।

Last updated on 27-04-2024
Home :: Lord Shani :: Shani Sadhe Satti Dhaiya :: Shree Shanidham Trust :: Rashiphal :: Our Literature
Photo - Gallery :: Video Gallery :: Janam Patri :: Pooja Material :: Contact Us :: News
Disclaimer :: Terms & Condition :: Products
Visitors
© Copyright 2012 Shree Shanidham Trust, All rights reserved. Designed and Maintained by C. G. Technosoft Pvt. Ltd.