कर्मों से कर्मों का शुद्धिकरण
कर्मों से कर्मों का शुद्धिकरण
श्री सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 महामंडलेश्वर परमहंस दाती महाराज
मित्रो, इस कर्म प्रधान विश्व में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसे कर्म करने का अधिकार मिला है। कर्मों के तीन भेद बताये गये हैं जिन्हें संचित, प्रारब्ध व क्रियमाण कर्म कहा जाता है। संचित कर्म और प्रारब्ध कर्म तो ऐसे तीर है जो मनुष्य के हाथ से छूट चुके हैं। शुभ या अशुभ जैसे भी कर्म हुए, वे हो चुके हैं। हम चाहकर भी वापस भूतकाल में नहीं जा सकते जहां जाकर हम उनका सुधार कर सकें। उनके संबंध में यदि हम कुछ कर सकते हैं तो वर्तमान के क्रियमाण कर्म के रूप में। संचित कर्म तो संचित हैं उनका फल तो अभी भोगना शुरू भी नहीं हुआ है। लेकिन प्रारब्ध कर्म का फल इस जीवन के प्रारंभ से ही मिलना शुरू हो जाता है। अत: प्रारब्ध से मिलने वाले कर्मों के फल की कड़वाहट मिटाने और मधुरता को बढ़ाने के लिए आज और अब ही कुछ किया जा सकता है। उस विशिष्ट कर्म को प्रायश्चित या कर्म शुद्धिकरण भी कहा जाता है।
नाना प्रकार की मुसीबतों से भरे इस युग में हमारा जन्म किसी अलौकिक सत्ता की प्रेरणा से हुआ है या इसके लिए हम स्वयं उत्तरदायी हैं? वैसे तो जन्म व मरण दोनों ही प्रयिाओं को शास्त्रों में दुस्सह्य दुखों से युक्त बताया गया है। किंतु जन्म से मृत्यु के बीच का जो हमारा वर्तमान जीवन काल है, इस अवधि में मिलने वाले दुखों से बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसका उचित उत्तर जानकर ही हम अपना वर्तमान जीवन सुखमय बना सकते हैं।
लोक-कल्याण की भावना से समय-समय पर शरीर धारण करने वाले महापुरुषों ने तत्कालीन परिवेश को ध्यान में रखते हुए सम-सामयिक लोगों को अपना इहलोक व परलोक संवारने का जो-जो उपाय बतलाया है उसमें यह बात स्पष्ट नजर आती है कि मनुष्य का वर्तमान जीवन अति महत्वपूर्ण है और उससे भी महत्वपूर्ण है मनुष्य द्वारा किये जाने वाले क्रियमाण कर्म! जो व्यक्ति किसी ऐसे धर्म-सिध्दांत में विश्वास रखते हैं जिसमें पुनर्जन्म की कोई चर्चा नहीं है, उनके लिए तो वर्तमान जीवन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि यही एकमात्र अवसर है जब मनुष्य को कर्म करने का मौका मिला है और इन्हीं कर्मों का लेखा-जोखा देखकर मनुष्य को मरणोपरांत मिलने वाले स्वर्ग-नरक का फैसला किया जाता है। जो लोग पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं, उन्हें यह मानने में कोई एतराज नहीं होता कि जन्मजन्मांतर तक कर्म अपने शुभाशुभ फल प्रदान करने के लिए जीव का पीछा करते रहते हैं। संचित कर्मों का ही एक भाग प्रारब्ध के रूप में हर जीव को भोगना पड़ता है। चूंकि मनुष्य को कर्म करने का अधिकार मिला है, अत: वह प्रारब्धवश मिलने वाले दुखों से छुटकारा पाने के लिए प्रायश्चित कर निज पूर्वकृत अशुभ कर्मों का शुद्धिकरण भी कर सकता है। |