ढैय्या का विचार
अष्टम भाव की ढैय्या
जब शनिदेव चंद्र कुंडली अर्थात जन्म राशि के अनुसार अष्टम भाव से गोचर करते हैं तो ढैय्या देते हैं, अष्टम ढैय्या चतुर्थ की ढैय्या से ज्यादा अशुभ फलों का संकेत देती है। मेरे अनुभव के अनुसार जब यह ढैय्या शुरू होती है तो जातक को शुभ फल की प्राप्ति होती है और वह नया कार्य करने लगता है। परन्तु अष्टम ढैय्या नया कार्य शुरू कराकर बीच में ही धोखा दे जाती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अष्टम ढैय्या में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। क्योंकि अष्टम भाव से शनिदेव तीसरी दृष्टि से दशम भाव को सप्तम दृष्टि से द्वितीय भाव को और दशम दृष्टि से पंचम भाव को देखता है। अष्टम ढैय्या सबसे पहले कारोबार में परेशानी पैदा करती है। जिसकी वजह से जातक के निजी कुटुंब और धन पर बुरा असर पड़ता हैं तथा धन की वजह से जातक के संतान के ऊपर भी कुप्रभाव पड़ता है। अष्टम ढैय्या में देश, काल व पात्र के अनुसार संतान को कष्ट अथवा संतान से कष्ट प्राप्त होता है। अत: जातक को अष्टम ढैय्या में कोई भी नया कार्य, यानी बैंक आदि से कर्ज या जमीन-जायदाद का खरीदना-बेचना या पिता की संपत्ति को बांटना नुकसानदायक होता है। अत: इस ढैय्या के दौरान ये कार्य नहीं करने चाहिए। अष्टम ढैय्या में जो व्यक्ति धार्मिक कार्य, समुद्र स्नान व तीर्थ यात्रा आदि करता है और परमात्मा को हाजिर-नाजिर रखता है तो उस व्यक्ति को अष्टम ढैय्या में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती है। जो व्यक्ति परमात्मा में विश्वास नहीं करते हैं, उन्हें शनिदेव लालच देकर ऐसा फंसा देता है कि वे जीवन भर परेशान रहते हैं। फिर भी याद रहे, इस प्रतिकूल परिस्थिति के पीछे भी संबंधित जातक के पूर्वकृत अशुभ कर्म ही रहते हैं।
ढैय्या किसको और कब
- शनिदेव जब कर्क एवं वृश्चिक राशि में भ्रमण करते हैं तो मेष राशि के लोगों पर शनिदेव की ढैय्या रहती है।
- शनिदेव सिंह व धनु राशि में गोचर में भ्रमण करते हैं, तब वृष राशि के लोगों पर शनिदेव की ढैय्या रहती है।
- कन्या व मकर राशि में शनिदेव के भ्रमणकाल में मिथुन राशि के लोगों पर शनिदेव की ढैय्या रहती है।
|