श्री महामृत्युञ्जय-कवच-यन्त्र
इसे किसी पवित्र तिथि को अष्टगंध से भोज पत्र पर लिखकर गुग्गल की धूप देनी चाहिए। गोत्र, पुत्र या पुत्री पिता का नाम (रोगी) का नाम यंत्र में संकेतित स्थान पर दें, पुरुष इसे दायें व ी बायें हाथ में बांधे।
अमोघ मृत्युञ्जय स्तोत्र
यह मृत्युंजय स्तोत्र अमोघ है, इसका पाठ कभी असफल नहीं होता।
उसकी महिमा को रेखांकित करने वाली एक पौराणिक कथा बहुत प्रसिद्ध है। कहते हैं, मृकुण्ड मुनि को कोई संतान न होने की वजह से सदैव चिन्तित रहते थे। संतान प्राप्ति के उद्देश्य से मुनि ने पत्नी सहित भगवान शिव की खूब आराधना की जिससे अवढर दानी शिव अति प्रसन्न हुए और पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया। लेकिन एक शर्त भी रख दी कि यदि तेजस्वी, बुद्धिमान, ज्ञानी व चरित्रवान् पुत्र चाहते हो तो वह मात्र १६ वर्ष की अल्पायु तक ही जीवित रह सकेगा।
यदि दीर्घायु पुत्र चाहते हो तो वह चरित्रहीन, अज्ञानी व मूर्ख होगा। भगवान भोलेनाथ की उक्त बात सुन कर मुनि दंपति ने तेजस्वी व गुणवान पुत्र को ही वरीयता दी, भले ही वह अल्पायु ही क्यों न हो।
शिव के वरदान से मुनि के एक सुन्दर व सर्वगुण सम्पन्न पुत्र हुआ। बालक की शिक्षा-दीक्षा चलती रही और अंतत: वह घड़ी भी आ ही गयी जो शंकर ने बालक की आयु निश्चित की थी। मुनि का चिंतित होना भी स्वाभाविक था। वे अत्यंत चिंतित हो गये। जब पुत्र ने अपने पिता को चिंतित व उदास देखा तो उसका कारण जानना चाहा। मुनि ने उसे सारी बातें बता दी।
मुनि पुत्र को अपनी साधना पर पूरा विश्वास था। उसने कहा कि मैं भगवान् मृत्युञ्जय आशुतोष को प्रसन्न करूंगा और पूरी आयु को प्राप्त करके रहूंगा। माता-पिता की सहमति से मुनि-पुत्र मार्कण्डेय ने विधिपूर्वक साधना प्रारंभ की। शिवलिंग की पूजा के बाद वह श्रद्धा से नित्य मृत्युञ्जय ोत का पाठ करता रहा, जिससे भोले शंकर अति प्रसन्न हुए।
जब सोलहवें वर्ष का अन्तिम दिन आया तो स्वाभाविक रूप से काल मार्कण्डेय का प्राण-हरण करने के लिए आ पहुंचा। मार्कण्डेय ने स्तोत्र को पूर्ण करने का आग्रह किया। काल ने गर्व से ऐसी आज्ञा नहीं दी और वह उसके प्राणों का हरण करने के लिए उद्यत हो गया। इतने में भक्त को बचाने के लिए शिव-शंकर स्वयं लिंग में से प्रकट हो गये और काल पर प्रहार करने लगे।
मार्कण्डेय अपने स्तोत्र का पाठ करते रहे। शंकर से भयभीत काल लौट गया। भगवान् शंकर ने स्तोत्र की समाप्ति पर मार्कण्डेय को अमरता का वरदान दिया। वे अमर हो गये। पद्मपुराण के इस माहात्म्य कथा का वर्णन करते हुए वशिष्ठ ने कहा है कि मार्कण्डेय रचित इस मृत्युञ्जय स्तोत्र का जो साधक श्रद्धा और विश्वास से पाठ करता है, वह मृत्यु से निर्भय हो जाता है।
रोग निवृत्ति में इसका अद्भुत प्रभाव देखा गया है। |