Kalsurp yog In (Hindi)
- जब अष्टम भाव में राहु पर मंगल, शनि या सूर्य की दृष्टि हो तब जातक के विवाह में विघ्न, देर होती है, अथवा उसे वैधव्य या विाुरत्व की प्राप्ति होती है।
- यदि जन्म कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में और राहु बारहवें भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक बहुत बड़ा धूर्त व कपटी होता है। इसकी वजह से उसे बहुत बड़ी विपत्ति में भी फंसना पड़ जाता है।
- जब लग्न में राहु-चंद्र हों तथा पंचम, नवम या द्वादश भाव में मंगल या शनि अवस्थित हों तब जातक की दिमागी हालत ठीक नहीं रहती। उसे प्रेत-पिशाच बाधा से भी पीड़ित होना पड़ सकता है।
- जब दशम भाव का नवांशेश मंगलराहु या शनि से युति करे तब संबंधित जातक भयंकर अग्निकांड का शिकार होता है।
- जब दशम भाव का नवांश स्वामी राहु या केतु से युक्त हो तब संबंधित जातक की दम घुटने से मौत या मरणांतक कष्ट पाने की प्रबल आशंका बनी रहती है।
- जब अष्टम भाव में पाप ग्रह युक्त राहु अवस्थित हो तब संबंधित जातक की मृत्यु सांप काटने से होती है।
- जब राहु व मंगल के बीच षडाष्टक संबंध हो तब संबंाित जातक को बहुत कष्ट होता है। वैसी स्थिति में तो कष्ट और भी बढ़ जाते हैं जब राहु मंगल से दृष्ट हो।
- जब लग्न मेष, वृष या कर्क हो तथा राहु की स्थिति 1ए 3ए 4ए 5ए 6ए 7ए 8ए 11 या 12वें भाव में हो। तब उस स्थिति में जातक स्त्राी, पुत्रा, धन-धान्य व अच्छे स्वास्थ्य का सुख प्राप्त करता है।
- जब राहु छठे भाव में अवस्थित हो तथा बृहस्पति केंद्र में हो तब जातक का जीवन खुशहाल व्यतीत होता है।
- जब राहु व चंद्रमा की युति केंद्र (1ए 4ए 7ए 10वें भाव) या त्रिाकोण में हो तब जातक के जीवन में सुख-समृद्धि की सारी सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं।
- जब शुक्र दूसरे य12वें भाव में अवस्थित हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
- जब बुधादित्य योग हो और बुध अस्त न हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
- जब लग्न व लग्नेश सूर्य व चंद्र कुंडली में बलवान हों साथ ही किसी शुभ भाव में अवस्थित हों और शुभ ग्रहों द्वारा देखे जा रहे हों। तब कालसर्प योग की प्रतिकूलता कम हो जाती है।
- जब दशम भाव में मंगल बली हो तथा किसी अशुभ भाव से युक्त या दृष्ट न हों। तब संबंधित जातक पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
- जब मंगल की युति चंद्रमा से केंद्र में अपनी राशि या उच्च राशि में हो, अथवा अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट न हों। तब कालसर्प योग की सारी परेशानियां कम हो जाती है।
- जब राहु अदृश्य भावों में स्थित हो तथा दूसरे ग्रह दृश्य भावों में स्थित हों तब संबंधित जातक का कालसर्प योग समृद्धिदायक होता है।
- जब राहु छठे भाव में तथा बृहस्पति केंद्र या दशम भाव में अवस्थित हो तब जातक के जीवन में धन-धान्य की जरा भी कमी महसूस नहीं होती।
- उक्त लक्षणों का उल्लेख इस दृष्टि से किया गया है ताकि सामान्य पाठकों को कालसर्प योग के बुरे प्रभावों की पर्याप्त जानकारी हासिल हो सके। किंतु ऐसा नहीं है कि कालसर्प योग सभी जातकों के लिए बुरा ही होता है। विविध लग्नों व राशियों में अवस्थित ग्रह जन्म-कुंडली के किस भाव में हैं, इसके आधार पर ही कोई अंतिम निर्णय किया जा सकता है।
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