Kalsurp yog In (Hindi)
कालसर्प योग वाले बहुत से ऐसे व्यक्ति हो चुके हैं, जो अनेक कठिनाइयों को झेलते हुए भी ऊंचे पदों पर पहुंचे। जिनमें भारत के प्रथम प्राानमंत्राी स्व पं ज़वाहर लाल नेहरू का नाम लिया जा सकता है। स्व मोरारजी भाई देसाई व श्री चंद्रशेखर सिंह भी कालसर्प आदि योग से ग्रसित थे। किंतु वे भी भारत के प्रधानमंत्राी पद को सुशोभित कर चुके हैं।
अत: किसी भी स्थिति में व्यक्ति को मायूस नहीं होना चाहिए और उसे अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए हमेशा अपने चहुंमुखी प्रगति के लिए सतत सचेष्ट रहना चाहिए। यदि कालसर्प योग का प्रभाव किसी जातक के लिए अनिष्टकारी हो तो उसे दूर करने के उपाय भी किये जा सकते हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में ऐसे कई उपायों का उल्लेख है, जिनके माध्यम से हर प्रकार की ग्रह-बाधाएं व पूर्वकृत अशुभ कर्मों का प्रायश्चित किया जा सकता है।
कालसर्प योग के प्रमुख भेद
कालसर्प योग मुख्यत: बारह प्रकार के माने गये हैं। आगे सभी भेदों को उदाहरण कुंडली प्रस्ुत करते हुए समझाने का प्रयास किया गया है -
1 अनन्त कालसर्प योग
जब जन्मकुंडली में राहु लग्न में व केतु सप्तम में हो और उस बीच सारे ग्रह हों तो अनन्त नामक कालसर्प योग बनता है। ऐसे जातकों के व्यक्तित्व निर्माण में कठिन परिश्रम की जरूरत पड़ती है। उसके विद्यार्जन व व्यवसाय के काम बहुत सामान्य ढंग से चलते हैं और इन क्षेत्राों में थोड़ा भी आगे बढ़ने के लिए जातक को कठिन संघर्ष करना पड़ता है। मानसिक परेशानियां जातक को आये दिन व्यथित करती रहती हैं। उन्हें अपयश का भी भागी होना पड़ता है। मानसिक पीड़ा कभी-कभी उसे घर- गृहस्थी छोड़कर वैरागी जीवन अपनाने के लिए भी उकसाया करती हैं। व्यवसाय में उसे आये दिन नुकसान होता रहता है। लाटरी, शेयर व सूद के व्यवसाय में ऐसे जातकों की विशेष रुचि रहती हैं किंतु उसमें भी इन्हें ज्यादा हानि ही होती है। यह योग जातकों को प्राय: निंदित कर्मों में संलग्न कराता है। शारीरिक रूप से उसे अनेक व्याधियों का सामना करना पड़ता है। उसकी आर्थिक स्थिति बहुत ही डावाडोल रहती है। फलस्वरूप उसकी मानसिक व्यग्रता उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घोलने लगती है। जातक को माता-पिता के स्नेह व संपत्ति से भी वंचित रहना पड़ता है। उसके निकट संबंधी भी नुकसान पहुंचाने से बाज नहीं आते। कई प्रकार के षड़यंत्राों व मुकदमों में फंसे ऐसे जातक की सामाजिक प्रतिष्ठा भी घटती रहती है। उसे बार-बार अपमानित होना पड़ता है। लेकिन प्रतिकूलताओं के बावजूद जातक के जीवन में एक ऐसा समय अवश्य आता है जब चमत्कारिक ढंग से उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। वह चमत्कार किसी कोशिश से नहीं, अचानक घटित होता है। जो जातक इस योग से ज्यादा परेशानी महसूस करते हैं। उन्हें निम्नलिखित उपाय कर लाभ उठाना चाहिए।
अनुकूलन के उपाय -
प्रतिदिन एक माला 'ॐ नम: शिवाय' मंत्रा का जाप करें। कुल जाप संख्या 21 हजार पूरी होने पर शिव का रुद्राभिषेक करें। कालसर्पदोष निवारक यंत्रा घर में स्थापित करके उसका नियमित पूजन करें।
नाग के जोड़े चांदी के बनवाकर उन्हें तांबे के लौटे में रख बहते पानी में एक बार प्रवाहित कर दें।
प्रतिदिन स्नानोपरांत नवनागस्तोत्रा का पाठ करें।
राहु की दशा आने पर प्रतिदिन एक माला राहु मंत्रा का जाप करें और जब जाप की संख्या 18 हजार हो जाये तो राहु की मुख्य समिधा दुर्वा से पूर्णाहुति हवन कराएं और किसी गरीब को उड़द व नीले वस्त्रा का दान करें।
हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें।
श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
शनिवार का व्रत रखते हुए हर शनिवार को शनि व राहु की प्रसन्नता के लिए सरसों के तेल में अपना मुंह देखकर उसे शनि मंदिर में समर्पित करें।
2 क़ुलिक कालसर्प योग
राहु दूसरे घर में हो और केतु अष्टम स्थान में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा। जातक को अपयश का भी भागी बनना पड़ता है। इस योग की वजह से जातक की पढ़ाई-लिखाई सामान्य गति से चलती है और उसका वैवाहिक जीवन भी सामान्य रहता है। परंतु आर्थिक परेशानियाें की वजह से उसके वैवाहिक जीवन में भी जहर घुल जाता है। मित्राों द्वारा ाोखा, संतान सुख में बाधा और व्यवसाय में संघर्ष कभी उसका पीछा नहीं छोड़ते। जातक का स्वभाव भी विकृत हो जाता है। मानसिक असंतुलन और शारीरिक व्याधियां झेलते-झेलते वह समय से पहले ही बूढ़ा हो जाता है। उसके उत्साह व पराक्रम में निरंतगिरावट आती जाती है। उसका कठिन परिश्रमी स्वभाव उसे सफलता के शिखर पर भी पहुंचा देता है। ऐसे जातकों को इस योग की वजह से होने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपायों का अवलंबन लेना चाहिए। |