ध्यानम्
चन्द्रोद्भासित मूर्धजं सुरपतिं पीयूषपात्रं दधत्,
हस्ताब्जेन दधत्सुदिव्यममलं हास्यास्य पङ्केरूहम्।
सूर्येन्द्वग्नि विलोचनं करतलै, पाशाक्ष सूत्राङ्कुशाम्,
भोजं बिभ्रतमक्षयं पशुपतिं मुत्युञ्जयं संस्मरे।।
चन्द्रमा के समान उज्जवल बाल वाले, देवताओं के स्वामी अमृत पात्र से सुशोभित, हाथों में सुन्दर सुगन्धित खिले हुए कमल पुष्प लिये, सूर्य, चन्द्रमा और अग्निरूप तीनों नेत्र वाले, हाथों में पाश, रुद्राक्षमाला, अंकुश और कमल धारण किये हुए ऐसे अक्षय भगवान पशुपति मृत्युंजय का मैं स्मरण कर रहा हूं। उनको नमस्कार है।
मानसोपचारै: सम्पूज्य मालाद्बच सम्पूज्य जपं कुर्यात्।।
मानसिक पूजन कर और माला की पूजा कर जप करना चाहिए।
जप मंत्र
ॐ ह्र्रौं जूं स: ॐ र्भुव: स्व: त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टि वद्र्धनम्। उव्र्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योम्र्मुक्षीय मामृतात्। भूर्भुव: स्वरों जूं स: ह्रौ ॐ ।
मैं त्र्यंबक भगवान महामृत्युञ्जय का पूजन करता हूं जो यश और शरीर शक्ति का वर्धन करने वाले हैं। भगवान शिव से प्रार्थना है कि पका हुआ खरबूजा जिस प्रकार अपने डंठल से अपने आप अलग हो जाता है, उसी प्रकार मुझे भी इन सांसारिक बंधनों से दूर कर मोक्ष को प्राप्त करायें। मुझे अमर बनने की इबछा नहीं।
जपान्तरं पूर्ववन्न्यासान्कृत्वा हस्ते जलं गृहीत्वा। अनेन अमुक संख्याक कृतेन श्री महामृत्युञ्जय मन्त्र जप कर्मणा श्री महामृत्युञ्जय: प्रीयताम्। इति जलं समर्पयेत्।
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