कर्मों से कर्मों का शुद्धिकरण
भगवान बुध्द द्वारा घोषित चारों आर्य सत्यों में भी कर्म, कर्मफल भोग, दुख निवृत्ति के लिए किये जाने वाले कर्म व निर्वाण, सभी कर्म से ही संबंधित हैं। मनुष्य चाहे किसी जाति, धर्म व संप्रदाय से संबंध रखता हो, चाहे वह स्वर्ग या नरक, पुनर्जन्म आदि को मानता हो या नहीं मानता हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मनुष्य कर्म को अवश्य मानता है। इसलिए यदि थोड़ी देर के लिए पूर्वजन्म की अवधारणा को खारिज भी कर दिया जाये तो भी वर्तमान जीवन में अपने कर्मों का फल भोगने के लिए हर प्राणी बाध्य है। जो लोग पुनर्जन्म को मानते हैं, उन्हें अच्छी तरह मालूम रहता है कि जिन कर्मों का फल भोगने के लिए जन्म मिलता है, उसे प्रारब्ध कहा जाता है। प्रारब्ध कुछ और नहीं, मनुष्य द्वारा किये अपने ही संचित कर्मों का एक अंश होता है जिसे उसे वर्तमान जीवन में ही भोगना होता है।
यहां मैं एक बार पुन: याद दिला देना आवश्यक समझता हूं कि ग्रह किसी कल्पना की उपज नहीं, वास्तविकता हैं, परमप्रभु के नियामक स्वरूप हैं। जैसे-जैसे आधुनिक विज्ञान प्रगति करता जा रहा है, अध्यात्म व ज्योतिष द्वारा प्रतिपादित अनेकानेक सिध्दांतों की पुष्टि भी होती जा रही है। प्रत्येक ग्रह के प्रकाश में किसी एक रंग की किरणों का अनुपात विशेष होता है। हमारे शरीर पर भी इन किरणों का प्रभाव शरीर में स्थित विभिन्न तत्वों पर बराबर पड़ता रहता है। ग्रह किसी को सुख-दु:ख नहीं देते हैं, बल्कि मनुष्य के किये गये कर्मों के फल मात्र का भुगतान करते हैं। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मनुष्य अपने कर्मों की वजह से दुखी है। ग्रह तो मात्र मनुष्य द्वारा किये गये कर्मों के फल भोग हेतु बने भाग्य का संकेत भी देते हैं।
आधुनिक युग में अपनाई गयी कृत्रिम जीवन-शैली मनुष्य को भले ही आभास न होने दे कि ग्रह-रश्मियाँ उस पर क्या असर डाल रही हैं, किन्तु आभास न होने के कारण इस तथ्य की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती कि भारतीय दर्शन शास्त्र और अध्यात्म शास्त्र में प्रतिपादित पूर्व अर्जित संस्कार भी मनुष्य के सुख-दु:ख, प्रगति-अवनति, जीवन-मरण के प्रमुख कारण हैं। ग्रह उनकी पूर्व सूचना देने वाले होते हैं और उसके अनुरूप सावधानी बरत कर मनुष्य बहुत हद तक प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के प्रयत्न भी कर सकते हैं।
इन बातों से यह स्पष्ट होता है कि मनुष्य पूर्वकृत कर्मों का फल भोगने के लिए एक विवश व निरीह प्राणी नहीं है। वह वर्तमान समय में उचित कर्म करके अपने पूर्वकृत कर्मों के फलों को भी प्रभावित कर सकता है। उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति खान-पान में अनियमितता बरतने के कारण कब्ज का मरीज बन जाता है और जब वह किसी प्राकृतिक चिकित्सक से परामर्श लेता है तो वह उसे दस दिनों तक उपवास करने की सलाह देता है। यानी पूर्वकृत अनियमितता का फल उसे दस दिनों के उपवास का दंड भोगने पर पूरा होता है। किन्तु यदि वह मरीज किसी वैद्य की मदद लेकर कोई विरेचक औषधि ले लेता है तो उसका कब्ज दूसरे ही दिन ठीक हो जाता है, बिना उपवास का कष्ट भोगे। इसी प्रकार यदि हम ग्रहों की सूचना के आधार पर वर्तमान समय में सही कदम उठायें तो पूर्वकृत अशुभ कर्मों के फल को भी टाला या कम किया जा सकता है।
यदि हम ग्रहों की स्थितियों के अनुसार भविष्य में आने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों का निराकरण करने के लिए प्रयत्नशील हो जाएं, यानी यदि ग्रहों की गति के कारण उनकी विष एवं अमृत युक्त रश्मियों की पूर्व सूचना का हम लाभ उठाते हुए, सही समय पर सही कदम उठाया करें, तो हम अपने वर्तमान ही नहीं भावी जीवन को भी सुधार सकते हैं। |