ú महाकाल शनैश्चराय नम:
नीलाद्रि शोभाञ्चित दिव्य मूर्ति:
खड्गी त्रिदण्डी शरचाप हस्त:।
शम्भूर्महाकाल शनि
पुरारिर्जयत्यशेषासुर नाशकारी ।।१।।
नीले पर्वत जैसी शोभा वाले दिव्य मूर्ति, खड्गधरी, त्रिदंडी, धनुषवाण वाले साक्षात शम्भु, महाकाल, शनि, पुरारी अशेष तथा समस्त असुरों का नाश करने वाले वे देव (शिव) सद विजयी होते हैं।
मेरुपृष्ठे समासीनं सामरस्ये स्थितं शिवम्।
प्रणम्य शिरसा गौरी पृच्छतिस्म जगद्धितम् ।।२।।
सुमेर पर्वत के पृष्ठ में समासीन सामरस्य में स्थित जगत का हित करने वाले भगवान शिव को सिर झुकाकर प्रणाम करती हुई माता पार्वती ने पूछा।
पार्वत्युवाच
भगवन! देवदेवेश! भक्तानुग्रहकारक!
अल्पमृत्युविनाशाय यत्त्वया पूर्व सूचितम् ।।३।।
तदेव त्वं महाबाहो ! लोकानां हितकारकम्।
तव मूर्ति प्रभेदस्य महाकालस्य साम्प्रतम् ।।४।।
पार्वती ने कहा -
हे भगवन्! देवाधिदेव! भक्तों पर अनुग्रह करने वाले! अल्प मृत्यु के शमन के लिए आपने जो पहले सूचित किया है, हे महाबाहो! वही लोकहित का कारक है। महाकाल की मूर्ति भेद ही प्रेरक है।
शनेर्मृत्र्युञ्ञय-स्तोत्रं बू्रहि मे नेत्रजन्मन:।
अकाल मृत्युहरणमपमृत्यु निवारणम्।।५।।
हे त्रिनेत्र! मुझे नेत्र से उत्पन्न शनि का मृत्युंजय स्तोत्र सुनाएं जो अकाल मृत्यु का हरण करता है तथा अपमृत्यु का निवारण करता है।
शनिमन्त्रप्रभेदा ये तैर्युक्तं यत्स्तवं शुभम्।
प्रतिनाम चतुथ्र्यन्तं नमोऽस्तु मनुनायुतम्।।६।।
शनि के मन्त्रों के जो भेद हैं, उनसे युक्त जो स्तव है, उस शुभदयक प्रत्येक (मनुयुक्त) नाम को चतुर्थी पर्यन्त मेरा नमस्कार है।
श्रीश्वर उवाच
नित्ये प्रियतमे गौरि सर्वलोकोपकारकम्।
गुह्याद्गुह्यतमं दिव्यं सर्वलोकहितेरते।।७।।
श्री महेश्वर बोले -
समस्त लोक के कल्याण में परायण रहने वाली हे प्रिये! गौरि! यह शनि मृत्युंजय स्तोत्र अत्यधिक दिव्य और सब जनों का उपकार करने वाला है।
शनि मृत्युञ्ञयस्तोत्रं प्रवक्ष्यामि तवाऽधुना।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वशत्रु विमर्दनम्।।८।।
मैं तुमसे शनि मृत्युंजय स्तोत्र को अब कहता हूँ। वह स्तोत्र सब मंगलों को करने वाला और सब शत्रुओं का दमन करने वाला है।
सर्वरोगप्रशमनं सर्वापद्विनिवारणम्।
शरीरारोग्यकरणमायुर्वृद्धिकरं नृणाम्।।९।।
यह स्तोत्र सब मनुष्यों के रोगों का शमन करने वाला, आपत्तियों का निवारण करने वाला, शरीर को आरोग्य देने वाला और आयुवृृद्धि करने वाला है।
यदि भक्तासि मे गौरी गोपनीयं प्रयत्नत:।
गोपितं सर्वतन्त्रेषु तच्छृणुष्व महेश्वरी।।१०।।
हे गौरि! यदि मेरी भक्त हो तो हे शिवे ! सब तन्त्रों में गुप्त और प्रयत्न पूर्वक गोपनीय रखे जाने वाले उस स्तोत्र को सुनो। |