विनियोग:
ú अस्य श्रीमहाकालशनिमृत्युञ्ञयस्तोत्रमन्त्रस्य पिप्पलादऋषिरनुष्टुप् छन्दे महाकालशनिर्देवता श: बीजमायसी शक्ति कालपुरुषायेति कीलकं ममाकालाय मृत्युनिवारणार्थे पाठे विनियोग:।।
‘‘ú अस्य............... पाठे विनियोग’ मंत्र से दायें हाथ में जल लेकर उक्त मन्त्र पढक़र जल नीचे छोड़ें।
‘ऋषिन्यासं करन्यासं देहन्यासं समाचरेत्।
महोगं मूधिर्न विन्यस्य मुखे वैवस्वतं न्यसेत् ।।११।।
तब ‘षिन्यास, करन्यास, देहन्यास की क्रियायें करें। सिर पर महो’ का न्यास करके मुख में वैवस्वत का न्यास करें।
हृदि न्यसेत्तमहाकालं गुह्ये कृशतनुं न्यसेत्।
जान्वोस्तूडुचरं न्यस्य पादयोस्तु शनैश्चरम् ।।१२।।
हृदय में महाकाल का न्यास करें, गुह्य इन्द्रिय में कृशतनु का न्यास करें। जाँघों में नक्षत्रचारी और पैरों में शनैश्चर का न्यास करना चाहिये।
गले तु विन्यसेन्मन्दं बाह्वोर्महाग्रहं न्यसेत्।
एवं न्यासविधिं कृत्वा पश्चात कालात्मन: शने: ।।१३।।
गले में मन्द का विन्यास करें व भुजाओं में महाग्रह का न्यास करें। इस प्रकार न्यास विधि सम्पन्न करने के बाद में कालात्मा शनि का (ध्यान करें)।
न्यास ध्यानं प्रवक्ष्यामि तनौ ध्यात्वा महेश्वरम्।
कल्पादियुगभेदांश्च कराङ्गन्यासरूपिण: ।।१४।।
शरीर में (हृदय में) महेश्वर का ध्यान कर न्यासध्यान को बताता हूं। करांगन्यास रूप से उसके भी कल्पादि के अनुसार भेद हैं।
कालात्मनो न्येसद् गात्रे मृत्युञ्ञय! नमोऽस्तु ते।
मन्वन्तराणि सर्वांगे महाकालस्वरूपिण:।।१५।।
मृत्युंजय नाम से नमस्कार करते हुए कालात्मा शनि का शरीर में ध्यान करना चाहिए। वह महाकाल रूपी शनि सब मन्वंतरों में व्याप्त सर्वांग में न्यास करें।
भावयेत्प्रीति प्रत्यंङ्गे महाकालाय ते नम:।
भावयेत्प्रभवाद्याब्दान् शीर्षे कालजिते नम:।।१६।।
अत: महाकाल शनि की ही प्रीतिपूर्वक प्रत्येक अंग में भावना करनी चाहिए तथा प्रभवादि वर्षों की भावना शिर में करता हुआ उन कालजित को नमन करें।
नमस्ते नित्यसेव्याय विन्यसेदयने भ्रुवो:।
सौरये च नमस्तेतु गण्डस्थलयोर्विन्यसेत् ।।१७।।
भ्रुवों में नित्यसेवनीय देव रूप उन देव को नमस्कार है, इस प्रकार न्यास करें। हे सौरि! आपको नमस्कार है, इस प्रकार गन्डस्थलों (कपोलों) में न्यास करें।
नमो वै दुर्निशच्र्याय चाश्विनं विन्यसेन्मुखे।
नमो नीलमयूखाय ग्रीवायां कार्तिकं न्यसेत् ।।१८।।
क्रूर स्वामी रूपी (शनि) को नमस्कार है - इस प्रकार मुख में आश्विन का न्यास करें। नीले किरणों वाले आपको नमस्कार है - इस प्रकार ग्रीवा (कण्ठ) में कार्तिक का विन्यास करना चाहिए।
मार्गशीर्ष न्यसेद्बाह्वोर्महारौद्राय ते मन:।
उध्र्वलोकनिवासाय पौषं तु हृदये न्यसेत् ।।१९।।
हे महारौद्र, आपको नमस्कार है - इस प्रकार भुजाओं में मार्गशीर्ष का विन्यास करें। उध्र्वलोकवासी (आपको नमस्कार है) - इस प्रकार हृदय में पौष को धारण करें।
नम: कालप्रबोधाय माघं वै चोदरेन्यसेत्।
मन्दगाय नमो मेढ्रे न्यसेद्वै फाल्गुनं तथा ।।२०।।
‘श्री कालबोधय नम:’ कहकर उदर में माघ को न्यास करें। ‘श्री मन्दगाय नम:’ कहकर लिंग में फाल्गुन का विन्यास करें। |