ऊर्वोन्र्यसेगौत्रमासं नम: शिवोऋताय च।
वैशाखं विन्यसेज्जान्वोर्नम: संवत्र्तकाय च ।।२१।।
‘ú शिवोऋताय नम:’ मन्त्र से जंघाओं के ऊपरी भाग में चैत्रमास का न्यास करें। ‘संवर्तकाय नम:’ मन्त्र से वैशाख का घुटनों में विन्यास करना चाहिए।
जंघयोभावयेज्ज्येष्ठं भैरवाय नमस्तथा।
आषाढ़ं पाद्योश्चैव शनये च नमस्तथा ।।२२।।
‘भैरवाय नम:’ मंत्र से जाँघों में ज्येष्ठ का न्यास करें तथा ‘शनये नम:’ से पैरों में आषाढ़ का न्यास करना चाहिये।
कृष्णपक्षं च क्रूराय नम: आपादमस्तके।
न्यसेदाशीर्ष पादान्ते शुक्लपक्षं ग्रहाय च ।।२३।।
‘क्रूराय नम:’ मंत्र से पैरों से लेकर मस्तक में कृष्ण पक्ष और ‘ग्रहाय नम:’ से मस्तक से लेकर पैरो तक शुक्ल पक्ष का
न्यास करें।
न्यसेन्मूलं पादयोश्च ग्रहाय शनये नम:।
नम: सर्वजिते चैव तोयं सर्वाङ्गुलौ न्यसेत् ।।२४।।
पुन: ‘शनये नम:’ से पैरों में मूल का न्यास करें तथा ‘सर्वजिते नम:’ मन्त्र से अँगुलियों में जल का न्यास करना चाहिए।
न्यसेद्गुल्फद्वये विश्वं नम: शुष्कतराय च।
विष्णुं भावयेज्जंघोभये शिष्टतमाय ते ।।२५।।
‘शुष्कतराय नम:’ द्वारा दोनों गुल्फों में सम्पूर्ण विश्व का न्यास तथा पुन: दोनों जंघाओं में अत्यन्तशिष्ट विष्णु की भावना करें।
जानुद्वये धनिष्ठां च न्यसेत् कृष्णारूचे नम:।
पूर्वभाद्रपदां चैव करालाय नमस्तथा ।।२६।।
उसी प्रकार पुन: दोनों घुटनों में ‘कृष्णारुचे नम:’ मन्त्र से धनिष्ठा का न्यास करना चाहिये तथा ‘करालाय नम:’ मन्त्र द्वारा पूर्वा भाद्रपद का न्यास करना चाहिये।
उरूद्वये वारूणंच न्यसेत्कालभृते नम:।
पृष्ठेउत्तरभाद्रपदां च करालाय नमस्तथा ।।२७।।
फिर देनों जांघों के ऊपर भाग में ‘कालभृते नम:’ मंत्र से शतभिषा का न्यास करना चाहिए और ‘करालाय नम:’ मंत्र से पीठ पर उत्तर भाद्रपद का न्यास करना चाहिए।
रेवतीं च न्यसेन्नाभौ नमो मन्दचराय च।
गर्भदेशे न्येसेन्नाभो नमो श्यामतराय च ।।२८।।
‘मन्दचराय नम:’ से रेवती का नाभि में न्यास तथा ‘श्यामतराय नम:’ मन्त्र से गर्भ देश (स्थान) में अश्विनी का न्यास करें।।२८।।
नमो भोगिस्रजे नित्यं यमं स्तनयुगे न्यसेत्।
न्यसेत्कृतिका हृदये नमस्तैल प्रियाय च ।।२९।।
‘भोगिस्रजे नम:’ - इस मन्त्र से स्तनद्वय में यम (भरणी) को तथा हृदय में ‘तैलप्रियाय नम:’ से कृतिका का विन्यास करें।
रोहिणीं भावयेद्धस्ते नमस्ते खड्गधारिणे।
मृगं न्यसेद्वामहस्ते त्रिदण्डोल्लासिताय च ।।३०।।
‘खड्गधारिणे नम:’ से हाथ में रोहिणी की तथा ‘त्रिदण्डोल्लासिताय नम:’ मन्त्र से वामहस्त में मृगशिरा (मृग) की धारणा करें।
दक्षोद्ध्र्व े भावयेद्रार्दं नमो वै बाणधारिणे।
पुनर्वसुमूधर्ववामे नमो वै बाणधारिणे ।।३१।।
पुन: ‘बाणधारिणे नम:’ मन्त्र से दक्षिण स्कन्ध पर आद्र्रा नक्षत्र की धारणा तथा इसी से पुन: पुनर्वसु की धरणा करनी चाहिए।
पुष्यं चं न्यसेद्वाहौ नमस्ते हर मन्यवे।
सार्पं न्यसेद्वामबाहौ चोग्रचापाय ते नम: ।।३२।।
‘हर मन्यवे नम:’ कहकर बाहु में पुष्य की धरणा करें तथा वाम बाहु में आश्लेषा (सार्पं) का ‘उग्रचापाय नम:’ से न्यास करें।
मघां विभावयेत्कण्ठे नमस्ते भस्मधारिणे।
मुखे न्यसेद्भगर्चं नम: क्रूरग्रहाय च ।।३३।।
कण्ठ में ‘भस्मधरिणें नम:’ से मघा नक्षत्र की भावना करें तथा मुख में ‘क्रूरग्रहाय नम:’ से भगर्च (पूर्वाफाल्गुनी) का न्यास करें।
भावयेद्दक्षनासायामर्यमाणश्व योगिने।
भावयेद्वामनासायां हस्तज्ञ धारिणे नम: ।।३४।।
‘योगिने नम:’ से दक्षिण नासिका में उत्तराफाल्गुनी का न्यास करें तथा वाम नासिका में ‘धारिणे नम:’ मन्त्र से हस्त नक्षत्र का न्यास करें।
त्वाष्ट्रं न्यसेद्दक्षकर्णे नमो ब्रह्मणाय ते।
विशाखां च दक्षनेत्रे नमस्ते ज्ञानदृष्टये ।।३५।।
‘ब्रह्मणाय नम:’ मंत्र से चित्रा का दक्षकर्ण में न्यास करें तथा दक्षनेत्र में ‘ज्ञान दृष्टये नम:’ मन्त्र से विशाखा का न्यास करना चाहिये।
विष्कुम्भं भावयेच्छीर्षसन्धौ कालाय ते नम:।
प्रीतियोगं भ्रुवो: सन्धौ महामन्द ! नमोस्तुते ।।३६।।
‘कालाय नम:’ मंत्र से शीर्ष सन्धि में विष्कुंभ का न्यास और भ्रुवों की संधि में प्रीतियो’ का ‘महामन्दय नम:’ से न्यास करें।
नेत्रयो: सन्धावायुष्मानयोगं भीष्माय ते नम:।
सौभाग्यं भावयेन्नासासन्धौ फलाशनाय च ।।३७।।
नेत्रों की संधि में ‘भीष्माय नम:’ मंत्र से आयुष्मान् योग की तथा ‘फलाशनाय नम:’ से नासिका की संधि में सौभाग्य की धारणा करें।
शोभनं भावयेत्कर्णो सन्धौ पुण्यात्मने नम:।
नम: कृष्णायातिगण्डं हनुसन्धौ विभावयेत् ।।३८।।
कर्ण सन्धि में शोभन का ‘पुण्यात्मने नम:’ मन्त्र से भावना करें और ठोडी की संधि में ‘ú कृष्णाय नम:’ से अतिगण्ड योग की धारणा करें।
नमो निर्मांसदेहाय सुकर्माणं शिरोधिरे।
धृतिं न्यसेद्वातौ पृष्ठे छायासुताय च ।।३९।।
‘निर्मांस देहाय नम:’ मन्त्र से सुकर्म यो’ की सिर में धारणा करें और ‘छायासुताय नम:’ मन्त्र से दोनों पीठ भागों में धृति का न्यास करना चािहये।
तन्मूलसन्धौ शूलं च न्यसेद्दग्राय ते नम:।
तत्कूर्प:न्यसेद्गण्डं नित्याननाय ते नम: ।।४०।।
‘ú अग्राय नम:’ से मूल सन्धि में शूल योग का न्यास करें तथा भौंहों के बीच वाले स्थान में ‘नित्याननाय नम:’ मन्त्र से गण्ड योग का न्यास करना चाहिये। |