यह स्तोत्र जातकों के हर प्रकार के कष्टों को दूर करने वाला है। यह स्तोत्र मानसिक अशांति, पारिवारिक कलह व दाम्पत्य सुख (पति-पत्नी के मनमुटाव) आदि में इस स्तोत्र का यदि 21 बार प्रति शनिवार को लगातार 7 शनिवार को पाठ किया जाये साथ ही शनि को तेलाभिषेक से पूजन किया जाये तो निश्चय ही इन बाधाओं से मुक्ति मिलती है। इतना ही नहीं यह स्तोत्र राजकृत, ग्रहकृत, समस्त दोष एवं मामला मुकदमा में भी रामबाण है। उक्त रीति से यदि 7 शनिवार को 11 पाठ किया जाये अथवा किसी विद्वान पुरुष से कराया जाये तो फलदयक है। ऐसे जातक जो संस्कृत में पाठ नहीं कर सकते उनके लिए हिंदी पद्यानुवाद भी सम्मिलित है।
आशा है जातक शनिदेव की कृपा से अपना सुख सौमनस्य को उजागर करेंगे।
विशेषकर ऐसे व्यक्ति जो मानसिक अशांति व अर्थाभाव से पीडि़त हैं, यदि वे इस शनि स्तोत्र का विधान पूर्वक 21 पाठ नियमित रूप से करें तो निश्चित रूप से संकट-मुक्त हो जायेंगे। साथ ही जो व्यापारी घाटे या मुकदमा आदि से दुखी हों तो वे नियमपूर्वक 31 या 51 पाठ विद्वानों के द्वारा अथवा स्वयं यदि भिज्ञ हों तो करें। अंत में शनि मंत्र से 1000 आहुति, तर्पण, मार्जन एवं ब्राह्मण भोजन करावें। श्रद्धापूर्वक पाठ किया जाये तो विद्या, यश, विवाहादि विलंब से मुक्ति आदि फल प्राप्त होते हैं।
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