कर्म-सिद्धांत और भाग्य
लौकिकजन कहते देखे जा सकते हैं - भलाई (अच्छे कर्म) का परिणाम (फल)अच्छा और बुराई (अशुभ कर्म)का परिणाम (फल) बुरा होता है। जबकि गिने-चुने लोग ऐसे भी हैं जो कहते हैं - कर भला, हो भला। वस्तुत: कर्म विषयक भ्रांति सब ओर फैली हुई है। यह तो निश्चित है कि कर्म फल मिलता है किन्तु अच्छे कर्म का बुरा फल क्यों? प्राय: यह प्रश्न भी यदाकदा उपस्थित हो जाता है। शास्त्र में विस्तार से चर्चा इस विषय पर यद्यपि नहीं हुई है तथापि इसमें कोई संशय नहीं है कि प्रत्येक कर्म का फल तुरंत नहीं मिलता। अनेक कर्मों के फल मिलने में अधिक समय लगता है।
यदि बुरा कर्म करने वाला व्यक्ति अच्छा फल भोग रहा है तो ऐसा मानना चाहिए कि वह उसके द्वारा अभी किये जा रहे कर्म (यिमाण) का फल नहीं, वरन् पूर्व कर्मों का फल है। बीज बोने के बाद तुरन्त पौध नहीं निकलती, उसमें समय लगता है। बीज, स्थिति, समय और मिट्टी के अनुसार प्रत्येक बीज नियत समय पर अंकुरित होता है और पल्लवित पुष्पित होकर फल भी प्रदान करता है। अनेक बार लम्बे समय तक फल नहीं आता या बीज व्यर्थ हो जाता है। स्थिति यह है कि यदि बीज ऐसा है जो उत्पन्न होने लायक नहीं है, वह पौधा नहीं बनता। उसी भांति कर्म और कर्मफल की भी स्थिति होती है। गीता में कहा है -
कर्मजं बुध्दियुक्ताहि फलं त्यक्त्वा मनीषिण: ।
जन्म बन्धविनिर्मुक्ता: पदं गच्छन्त्यनामयम् ॥ 2-51॥
यानी जब कर्म तो किया जाता है किंतु फल की कामना नहीं होती तब जन्म-मरण का बंधन ही छूट जाता है। और जीव मोक्ष पद को प्राप्त करता है। इससे सिध्द होता है कि आसक्ति या फलाशावश कर्म करने पर ही जन्म-मरण अथवा सुख-दुख प्राप्त होते हैं। किन्तु सांसारिक जन फलासक्ति में डूबकर कर्म करते हैं। कर्म अच्छा करें या बुरा करें, सब भोग और सुखों की कामना से करते हैं। जगत की प्रकृति मानकर कर्म करने वाले जन बिरले ही होते हैं।
इससे यह ज्ञात हो जाता है कि सकाम कर्म से ही सांसारिक भोग, सुख-दु:ख के रूप में प्राप्त होते हैं। क्योंकि पूर्वकृत कर्मों को सुख-दु:ख व रोगादि में मूल कारण मानना स्वयं सिध्द है। तब यह भी नहीं माना जा सकता कि मात्र विषय भोग-वश ही प्राणी रोगी होते हैं। अनेक भयंकर असाध्य रोग प्रारब्ध के भी परिणाम हो सकते हैं। मनुष्य के प्रारब्ध जन्य अशुभ कर्मफलों और प्रकृति विरुध्द वर्तमान कर्मों के परिणाम अनेक प्रतिकूलताओं और शारीरिक व मानसिक रोगों के रूप में भी दिखलाई देते हैं। |