वीर्येभावयेद्विष्टि नमो मन्यूग्रतेजसे।
रूद्रमित्रं पितृवसुवारीयैतांश्च पञ्च च ।।५१।।
वीर्य में ‘मन्यूग्रतेजसे नम:’ मन्त्र से विष्टि योग की और रुद्र, सूर्य, पितर, वसु, और वारि इन पाँचों की भी भावना करनी चाहिये।
मुहूर्ताश्च दक्षपादनखेषु भावयेन्नम:।
पुरूहूताँश्च वामपादनखेषु भावयेन्नम:।।५२।।
दक्षिण चरण नखों में मुहूर्तों की भावना करें तथा वाम चरण नखों में पुरुहूतों (देवों) की धारणा करें।
सत्यव्रताय सत्याय नित्यसत्याय ते नम:।
सिद्धेश्वर! नमस्तुभ्यं योगेश्वर ! नमोस्तुते ।।५३।।
सत्यव्रत, सत्यस्वरूप, नित्यशाश्वत आपको नमस्कार है। हे सिद्धेश्वर! आपको नमस्कार है। हे योगेश! बार-बार नमस्कार है।
वाह्निनक्तं चरांश्चैव वरुणोयमयोनिकान्।
मूहुर्तांश्च दक्षहस्तनखेषु भावयेन्नम: ।।५४।।
वह्निरूपचरों वायु, वरुण, यम तत्वों और काल की दक्षिण हाथ के नखों में भावना करनी चािहये।
लग्नोदयाय दीर्घाय मार्गिणे दक्षदृष्टये।
वक्राय चातिक्रूराय नमस्ते वामदृष्टये ।।५५।।
लग्नोदय, दीर्घ, मार्गी, दक्षदृष्टि, वक्र, अतिक्रूर, वामदृष्टि (आदि नामों से प्रसिद्ध) देव शनि को प्रणाम है।
वामहस्तनखेष्वन्त: वर्णेशाय नमोऽस्तुते।
गिरिशाहिर्बुधन्यपूषा पाद्दस्रांश्च भावयेत् ।।५६।।
वामहस्त, नखेश, अन्त:वर्ण, ईश आपको प्रणाम है। गिरीश, अहिर्बुध्न्य, पूषा और अश्विनी के चरण की जप पूर्वक भावना करनी चाहिये।
राशिभोक्ते राशिगाय राशिभ्रमणकारिणे।
राशिनाथाय राशीनां फलदात्रे नमोस्तुते ।।५७।।
राशिभुक्त, राशिग, राशिभ्रमणकारी और राशियों के नाथ और राशिफल दाता नामों वाले आपको नमस्कार है।
यमाग्निचन्द्रादितिकविधतृश्च विभावयेत्।
ऊध्र्वहस्तदक्षनखेष्वन्यत्कालाय ते नम: ।।५८।।
यम, अग्नि, चन्द्र, अदिति, कवि, धाता आदि की उध्र्व हस्त, दक्षिण नखों में ‘अन्यत् कालाय नम:’ मन्त्र से भी धारणा करनी चाहिये।
तुलोच्चस्थाय सौम्याय नक्रकुम्भगृहाय च।
समीरत्वष्ट्जीवांश विष्णु तिग्म धुतोन्यसेत् ।।५९।।
तुला में उच्चस्थ और मकर-कुंभ राशियों में सौम्य रहने वाले समीर रूप, अष्ट जीवांश, विष्णु, तिर्यक् और उन्मत्त की भावना करनी चाहिये।
ऊध्र्ववामहस्तेष्वन्यग्रह निवारिणे।
तुष्टाय च वरिष्ठाय नमो राहुसखाय च ।।६०।।
उध्र्व वाम हस्त में अन्य ग्रहों का स्वरूप निवारण करने वाले हेतु राहु के सखा, संतुष्ट, वरिष्ठ आपको नमस्कार है - मंत्र से नमन करें। |