रविवारं ललाटे च न्यसेद्भीमदृशे नम:।
सोमवारं न्यसेच्छान्ते नमो जीवस्वरूपिणे ।।६१।।
ललाट में ‘भीमदृशे नम:’ मंत्र से रविवार को और सोमवार में ‘जीवस्वरूपिणे शान्ति नम:’ मन्त्र से न्यास करें।
भौमवारं गुरु न्यसेत्साच्छान्ते नमो मृतप्रियाय च।
मैदे न्यसेत्सौम्यवारं नमो जीवस्वरूपिणे ।।६२।।
भौमवार और महान शान्त रूप ‘मृतप्रियाय नम:’ मन्त्र से न्यास करना चाहिये तथा बुधवार को मेदा में स्थिति ‘जीवस्वरूपिणे नम:’ से न्यास करें।
वृषणे गुरुवारं च नमो मन्त्रस्वरूपिणे।
भृगुवारं मलद्वारे नम: प्रलयकारिणे ।।६३।।
गुरुवार को वृषण स्थान में ‘मन्त्रस्वरूपिणे नम:’ से और भृगुवार को मलद्वार में ‘प्रलयकारिणे नम:’ मंत्र से न्यास करें।
पादयो शनिवारं च निर्मांसाय नमोस्तुते।
घटिकां न्यसेत्केशेषु नमस्ते सूक्ष्मरूपिणे ।।६४।।
‘निर्मांसाय नमो’ से पादें में शनिवार के दिन और ‘सूक्ष्मरूपिणे नम:’ मन्त्र से केशों में घटिका का न्यास करना चाहिये।
कालरूप! नमस्ते तु सर्वपापप्रणाशक।
त्रिपुरस्य वधार्थाय शम्भू जाताय ते नम: ।।६५।।
हे कालरूप! हे सर्वपापविनाशक! आपको नमस्कार है। त्रिपुर के वध के लिए शम्भू बनने वाले आपको नमस्कार है।
नम: कालशरीराय काल पुत्राय ते नम:।
कालहेतो! नमस्तुभ्यं कालनन्दाय ते नम: ।।६६।।
साक्षात् काल शरीर आपको नमस्कार है। हे काल के हेतुभूत! आपको नमन है। कालपुत्र! आपको नमस्कार है।
अखण्डदण्डमानाय त्वनाद्यन्ताय वै नम:।
कालदेवाय कालाय कालकालाय ते नम: ।।६७।।
हे अखण्डदण्डधारी, आदि-अन्त रूप आपको नमस्कार है। कालदेव, कालों के भी महाकाल आपको नमस्कार है।
निमेषादिमहाकल्पकालरूपं च भैरवम्।
मृत्युंञ्जजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम् ।।६८।।
जो निमेष, आदिमहाकल्प, कालरूप भैरव हैं, मृत्युंजय, महाकाल और शनैश्चर हैं, मैं प्रणाम करता हूँ।
दातारं सर्व भव्यानां भक्तानामभयकरम्।
मृत्युंञ्जजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम् ।।६९।।
सब ऐश्वर्यो के दता, भक्तों के भय को नष्ट करने वाले या अभय करने वाले मत्युंजय, महाकाल, शनैश्चर को मैं प्रणाम करता हूँ।
कत्र्तारं सर्वदु:खानां दुष्टानां भयवर्धनम्।
मृत्युंञ्जजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम् ।।७०।।
दुष्टों के लिए सब दु:खों के कर्ता और भयवर्धन करने वाले मृत्युंजय, महाकाल, शनैश्चर देव को मैं प्रणाम करता हूँ। |