इत्तरिं ग्रहजातानां फलानामधिकारिणाम्।
मृत्युंञ्जजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम् ।।७१।।
ग्रह जातकों के पाप फलों के अधिकारी, मृत्युंजय महाकाल, शनिदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।
सर्वेषामेव भूतानां सुखदं शान्तिभव्ययम्।
मृत्युंञ्जजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम् ।।७२।।
सब प्राणियों के लिए सुखदयक, शान्तिदयक भव्य मृत्युंजय, महाकाल शनिदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।
कारणं सुखदु:खानां भावाऽभावस्वरूपिणाम्।
मृत्युंञ्जजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम् ।।७३।।
भाव अभाव रूपी सुख दुखों के कारण, मृत्युंजय, महाकाल शनैश्चरदेव को मैं नमन करता हूँ।
अकालमृत्युहरणमपमृत्यु निवारणम्।
मृत्युंञ्जजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम् ।।७४।।
अकाल मृत्यु का हरण करने वाले, अपमृत्यु का निवारण करने वाले मृत्युंजय, महाकाल शनिदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।
कालरूपेण संसार भक्षयन्त महाग्रहम्।
मृत्युंञ्जजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्।।७५।।
कालरूप से संसार का भक्षण करने वाले महाग्रह मृत्युंजय महाकाल, शनिदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।
दुर्निरीक्ष्यं स्थूलरोमं भीषणं दीर्घ लोचनम्।
मृत्युंञ्जजय महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्।।७६।।
देखने में भयंकर, बहुत लम्बे और मोटे रोम वाले भीषण, दीर्घ लोचन, मृत्युंजय, महाकाल शनिदेव को मैं प्रणाम करता हूॅँ।
कालस्य वशभा: सर्वे न काल: कस्यचिद्वश:।
तस्मात्त्वां कालपुरुषं प्रणतोऽस्मि शनैश्चरम् ।।७७।।
काल के वश में सब जन हैं, काल किसी के वश में नहींं है। ऐसे उन कालपुरुष शनिदेव को मैं नमन करता हूँ।
कालादेव जगस्सर्व काल एव विलीयते।
कालरूप: स्वयं शम्भु कालात्मा ग्रह देवता ।।७८।।
काल से ही सारा जग है और काल में ही विलीन हो जाता है। स्वयं शंकर भी काल रूप हैं। ग्रह देवता सब काल आत्मा हैं।
चण्डीशो रूद्रडाकिन्याक्रान्त चण्डीश उच्यते।
विद्युदाकलितो नद्यां समारूढ़ो रसाधिप: ।।७९।।
चंडीश, रुद्र, डाकिनी से आक्रान्त होने पर चंडीश कहा जाता है।
चण्डीश: शुकसंयुक्तो जिह्वया ललित पुन:।
क्षतजस्तामसी शोभी स्थिरात्मा विद्युता युत:।।८०।।
चंडीश शुक से संयुक्त होकर जिह्वा से सुन्दर हो जाता है। इन चंडीश के क्षतज, तामसी, शोभी, स्थिरात्मा, विद्युत युक्त आदि अनेक नाम हैं। |